Ad

processing unit

भारत में 2 बिलियन डॉलर इन्वेस्ट करेगा UAE, जानिये इंटीग्रेटेड फूड पार्क के बारे में

भारत में 2 बिलियन डॉलर इन्वेस्ट करेगा UAE, जानिये इंटीग्रेटेड फूड पार्क के बारे में

भारत में इंटीग्रेटेड फूड पार्क बनाने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) (United Arab Emirates - UAE) ने 2 बिलियन डॉलर इन्वेस्ट करने का निर्णय लिया है। गुरुवार को I2U2 की बैठक में भारत में निवेश से जुड़ी जानकारी प्रकाश में आई। संयुक्त अरब अमीरात द्वारा भारत में इन्वेस्टमेंट के जरिये इंटीग्रेटेड फूड पार्क की सीरीज डेवलप की जाएगी। अव्वल तो यह I2U2 की बैठक क्या है, मेगा फूड पार्क (Mega Food Park) क्या है, इसके क्या फायदे हैं, भारत में वर्तमान में इस संदर्भ में क्या स्थिति है, इन सवालों के जानिये जवाब मेरीखेती पर। संयुक्त अरब अमीरात के द्वारा भारत में इंटीग्रेटेड फूड पार्क की सीरीज डेवलपमेंट से जुड़े निवेश के बारे में बयान I2U2 की संयुक्त बैठक में दिया गया। गौरतलब है कि भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, इजरायल के पीएम यायर लापिड (Yair Lapid) और यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान, I2U2 के पहले वर्चुअल शिखर सम्मेलन में सम्मिलित हैं। इस सम्मेलन में ये लीडर्स संयुक्त आर्थिक परियोजनाओं पर चर्चारत हैं।

I2U2 का अर्थ

आईटूयू2 (I2U2) भारत, अमेरिका, इजरायल और यूएई द्वारा मिलकर बनाया गया एक समूह है। दरअसल, I2U2 नाम में आई-2 का मतलब इंडिया (भारत) और इस्राइल से, जबकि यू-2 का उपयोग यूएस और यूएई के लिए किया गया है। I2U2 समूह की अवधारणा विगत 18 अक्टूबर को चार देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हुई थी। गौरतलब है कि बीते तीन सालों में भारत के संबंध समूह के अन्य तीन देशों के साथ मजबूत हुए हैं। समूह 12U2 का प्रमुख उद्देश्य पानी, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य एवं फूड सिक्योरिटी अर्थात खाद्य सुरक्षा जैसे छह क्षेत्रों में मिलकर निवेश एवं प्रोत्साहन को बढ़ावा एवं मदद देना है। इस I2U2 वर्चुअल सम्मेलन में प्रमुख चर्चा का विषय यूक्रेन-रूस गतिरोध, वैश्विक खाद्य एवं ऊर्जा का संकट हैं।

ये भी पढ़ें: यूएई ने भारतीय गेंहू व आटे निर्यात पर लगाई 4 माह तक रोक

मेगा फूड पार्क (Mega Food Park) किसे कहते हैं ?

मेगा फूड पार्क में एग्री प्रोडक्ट्स (कृषि उत्पाद) के भंडारण और उसकी प्रोसेसिंग की व्यवस्था रहती है। इस व्यवस्था तंत्र में इन प्रॉडक्ट्स की प्रोसेसिंग के जरिये इनका मूल्य संवर्धन किया जाता है। इसके लिए व्यवस्थित तंत्र के तहत कच्चे माल को उच्च क्वालिटी की ऊंची कीमत वाले उत्पादों में बदला जाता है। यानी मेगा फूड पार्क (Mega Food Park) खाद्य सुरक्षा के लिए तैयार वह व्यवस्थित तंत्र है, जिसमें खेत की फसलों के भंडारण के साथ ही उससे तैयार उत्पादों के भंडारण और उसकी प्रोसेसिंग से लेकर उन्हें बाजार उपलब्ध कराने तक की सारी व्यवस्था निहित है।

ये भी पढ़ें: किसान उड़ान योजना से विकसित हो रही ये सुविधाएं : बदल रही पूर्वोत्तर के किसानों की तस्वीर और तक़दीर
मौजूदा तौर पर भारत में किसान और किसानी हित में लागू मंडी क्रय-विक्रय व्यवस्था के मुकाबले यह तंत्र इसलिए सफल कहा जा सकता है क्योंकि, इसमें फसल के उच्चतम उपभोग से लेकर उसके उचित एवं उच्चतम दाम प्राप्त करने का सार भी समाहित है। किसानों को उपज की सही कीमत मिले, बाजार को जरूरी प्रोसेस्ड प्रॉडक्ट्स मिले, इस उद्देश्य से केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 में देश में 42 मेगा फूड पार्क स्थापित करने की दिशा में काम शुरू किया था। वर्तमान में, देश में 22 मेगा फूड पार्क ने काम करना शुरू कर दिया है।

केंद्रीय मंत्री पटेल ने दी जानकारी

संसद में शुक्रवार को केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल (Prahlad Singh Patel) ने देश में स्वीकृत 38 मेगा फूड पार्कों को दी गई अंतिम मंजूरी के बारे में जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि 3 अन्य मेगा फूड पार्क को भी सैद्धांतिक अनुमति दी गई है। इन तीन में से दो मेगा फूड पार्क मेघालय और तमिलनाडु में स्थापित होने जा रहे हैं।

फूड पार्कों में 6.66 लाख रोजगार सृजित

केंद्रीय मंत्री ने एक सवाल का जवाब में बताया कि, एक मेगा फूड पार्क से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर 5 हजार लोगों के लिए रोजगार सृजन होता है। यहां यह ध्यान रहे कि बिजनेस प्लान के आधार पर प्रोजेक्ट्स में सृजित रोजगार संख्या भिन्न भी हो सकती है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि वर्तमान में संचालित 22 मेगा फूड पार्कों से लगभग 6,66,000 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त हुआ है। राज्य सभा में लिखित जवाब में उन्होंने बताया कि, ये 22 मेगा फूड पार्क- असम, पंजाब, ओडिशा, मिजोरम, महाराष्ट्र सहित 15 राज्यों में संचालित किए जा रहे हैं।

मेगा फूड पार्क में उपलब्ध व्यवस्थाएं

मेगा फूड पार्क एक ऐसा बड़ा तंत्र है जहां कृषि उत्पादित फसल (एग्री प्रॉडक्ट्स), फल-सब्जियों के सुरक्षित भंडारण की व्यवस्था होती है। यहां इन प्रॉडक्ट्स की प्रोसेसिंग कर मार्केट की डिमांड के मुताबिक प्रॉडक्ट्स तैयार किए जा सकते हैं। साथ ही इन मेगा फूड पार्क का सड़क, रेल एवं जल मार्ग से जुड़ने का भी बेहतर नेटवर्क होता है। यहां निर्मित वस्तुओं को कम समय में देश के अन्य राज्यों के साथ ही निर्यात के तौर पर विदेशों तक अल्प समय में पहुंचाया जा सकता है।

ये भी पढ़ें: धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका

क्लस्टर बेस्ड सर्विस

मेगा फूड पार्क को “क्लस्टर” बेस्ड अवधारणा पर विकसित किया गया है। इसमें प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्रों (Primary Processing Center), केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्रों (Central Processing Center) की व्यवस्था की गई है। फल-सब्जियों के साथ-साथ उद्यमियों द्वारा खाद्य प्रसंस्करण यूनिटों (Food Processing Units) की स्थापना के लिए भी इसमें 25-30 पूर्ण विकसित भूखंडों सहित आपूर्ति श्रृंखला संरचना का तंत्र स्थापित किया जाता है।

किसानों को मिलने वाले फायदे

कृषि उत्पादित फसल के भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था के अभाव में फल-सब्जियों के सड़ने का खतरा रहता है। मेगा फूड पार्क में एग्री प्रॉडक्ट्स के भंडारण की व्यवस्था के साथ ही प्रोसेसिंग तंत्र की सुलभता के कारण फल-सब्जियों के सड़ने के बजाए, कीमत बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। कच्चे माल के सुरक्षित भविष्य के कारण किसान, उद्योग, व्यापारी के मुनाफे के साथ ही जिले एवं राज्य के राजस्व में भी सकारात्मक वृद्धि होती है। फल-सब्जियों जैसी फसलों की प्रोसेसिंग के विकल्प न होने से, दूरदराज तक भेजने के चक्कर में व्यापारी व किसान को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता था। ऐसे में जिन राज्यों, जिलों में किसी फसल की यदि प्रधानता है, वहां प्रोसेसिंग यूनिट लग जाए तो फसल सड़ने से बचेगी, किसान का भला होगा, व्यापारी भी नुकसान से बच जाएगा।

ये भी पढ़ें: किसान रेल योजना (Kisan Rail info in Hindi)
इसे टमाटर से समझा जा सकता है, अल्प काल तक खाद्य योग्य टमाटर उत्पादित क्षेत्र में, टोमैटो सॉस बनाने की प्रोसेसिंग यूनिट यदि विकसित की जाए, तो किसान व किसानी सभी का कल्याण होगा।

ये भी पढ़ें: टमाटर की खेती में हो सकती है लाखों की कमाई : जानें उन्नत किस्में

काम करने का तंत्र

मेगा फूड पार्क प्रोजेक्ट का कार्यान्वयन एक विशेष प्रयोजन उपाय (एसपीवी) करती है। जो संस्था अधिनियम के अंतर्गत एक पंजीकृत कॉरपोरेट निकाय है। राज्य सरकार, राज्य सरकार की संस्थाओं एवं सहकारिताओं को मेगा फूड पार्क परियोजना के कार्यान्वयन के लिए पृथक रूप से एसपीवी बनाने की आवश्यकता नहीं है।

यहां संचालित हो रहे मेगा फूड पार्क

प्रदान की गयी जानकारी के अनुसार संचालित किए जा रहे 22 मेगा फूड पार्क इस प्रकार हैं :
  1. स्रीनी मेगा फूड पार्क, चित्तूर, आंध्र प्रदेश
  2. गोदवारी मेगा एक्वा पार्क, पश्चिम गोदावरी, आंध्र प्रदेश
  3. नॉर्थ इस्ट मेगा फूड पार्क, नलबाड़ी, असम
  4. इंडस बेस्ट मेगा फूड पार्क, रायपुर, छत्तीसगढ़
  5. गुजरात एग्रो मेगा फूड पार्क, सूरत, गुजरात
  6. क्रेमिका मेगा फूड पार्क, ऊना, हिमाचल प्रदेश
  7. इंटिग्रेटेड मेगा फूड पार्क, तुमकुर, कर्नाटक
  8. केरल औद्योगिक अवसंरचना विकास निगम (KINFRA) मेगा फूड पार्क, पलक्कड़, केरल
  9. इंडस मेगा फूड पार्क, खरगौन, मध्य प्रदेश
  10. अवंती मेगा फूड पार्क, देवास, मध्य प्रदेश
  11. पैथन मेगा फूड पार्क, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
  12. सतारा मेगा फूड पार्क, सतारा, महाराष्ट्र
  13. ज़ोरम मेगा फ़ूड पार्क, कोलासिब, मिज़ोरम
  14. एमआईटीएस मेगा फूड पार्क, रायगढ़, ओडिशा
  15. इंटरनेशनल मेगा फूड पार्क, फज्जिलका, पंजाब
  16. सुखजीत मेगा फूड पार्क, कपूरथला, पंजाब
  17. ग्रीनेटक मेगा फूड पार्क, अजमेर, राजस्थान
  18. स्मार्ट एग्रो मेगा फूड पार्क, निजामाबाद, तेलंगाना
  19. त्रिपुरा मेगा फूड पार्क, पश्चिम त्रिपुरा, त्रिपुरा
  20. पतंजली फूड एंड हर्बल पार्क, हरिद्वार, उत्तराखंड
  21. हिमालयन मेगा फूड पार्क, उधम सिंह नगर, उत्तराखंड
  22. जंगीपुर बंगाल मेगा फूड पार्क, मुर्शीदाबाद, पश्चिम बंगाल।
भारत में यूएई द्वारा इन्वेस्ट की जा रही बड़ी राशि से निश्चित ही उम्मीद की जा सकती है कि, इससे I2U2 के उद्देश्य पूरे होंगे और भारत के कृषि उत्पादन, विनिर्माण एवं बाजार तंत्र में कसावट आने से उचित परिणाम मिलेंगे।
बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

आजकल पारंपरिक तरीकों से खेती करते हुए किसान मुनाफा तो कमाते हैं। लेकिन अगर वह ज्यादा आमदनी कमाना चाहते हैं, तो केवल पारंपरिक तरीके की खेती करना इसका हल नहीं है। सरकार और सभी तरह के कृषि वैज्ञानिक लगातार इस चीज के पीछे प्रयासरत रहते हैं, कि किसान किसी ना किसी तरह से खेती के साथ-साथ कुछ अन्य चीजें जोड़कर अपनी आमदनी को बढ़ा सकें। इन सबके बीच ही सरकार की तरफ से किसानों को खेती के साथ-साथ बाकी मल्टीटास्किंग (Multitasking) काम करने की सलाह दी जाती है। ताकि उनकी आय में बढ़ोतरी हो सके। इसके लिए फूड प्रोसेसिंग यूनिट (Food Processing Unit) को बढ़ावा दिया जा रहा है, क्योंकि ज्यादा वैल्यू एडीशन उत्पादन की प्रोसेसिंग और डायरेक्ट मार्केटिंग में है। इसी आधार पर राज्य सरकारें अब किसानों को फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में भी भरपूर मदद दे रही है।
ये भी देखें: भारत में 2 बिलियन डॉलर इन्वेस्ट करेगा UAE, जानिये इंटीग्रेटेड फूड पार्क के बारे में
हरियाणा सरकार की तरफ से ऐसी ही एक पहल की गई है और बागवानी विभाग किसानों की इस मुद्दे में मदद कर रहा है। किसान सुभाष सिंह भी बागवानी विभाग की सहायता से फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने वाले किसानों में शामिल हैं।

सुभाष सिंह को बागवानी विभाग से मिला सहयोग

हरियाणा के एक सामान्य से किसान सुभाष सिंह ने अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद फैसला लिया कि वह खेतीबाड़ी से जुड़कर ही अपनी आमदनी कम आने वाले हैं। पहले से ही उनके पिता फलों की बागवानी करते आ रहे थे और उन्होंने भी इसी क्षेत्र में अपना हुनर आजमाने की कोशिश की है। अपने पिता के फलों की बागवानी को काम को आगे बढ़ते हुए फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई। साल 2003 में यह बिजनेस लगाने के बाद काफी समस्याएं आईं। लेकिन इस काम में बागवानी विभाग का सहयोग मिला और किसान सुभाष ने अपने बिजनेस को बेहतर बनाने के लिए लोन लिया। इस प्रोसेस में बागवानी विभाग ने भी 25 प्रतिशत सब्सिडी का लाभ दिया।

मार्केटिंग के लिए बनाए खुद के स्टोर

आज के समय में सुभाष सिंह फलों की बागवानी तो कर ही रहे हैं, इसके साथ-साथ वह फूड प्रोसेसिंग का बिजनेस भी अच्छी तरह से कर रहे हैं। इनकी इस फूड प्रोसेसिंग यूनिट में 40 से 50 तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं। साथ ही, गांव के करीब 20 से 25 लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार भी मिल रहा है। इन प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग के लिए सुभाष जी ने अपने 3 स्टोर भी बनाए हैं। इसके अलावा, खादी-ग्राम उद्योग विभाग को भी कुछ प्रोडक्ट्स (Product) दिए जाते हैं। अपने अनुभव से सुभाष सिंह किसानों को यह बताना चाहते हैं, कि किसान अगर अपनी उपज का अच्छा दाम हासिल करना चाहते हैं। तो उन्हें अपने किसानी के व्यवसाय के साथ-साथ कुछ ना कुछ वैल्यू एडिशन जरूर करना होगा। खेती के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग का बिजनेस बेहद आसानी से हो जाता है और यह बहुत फायदा भी देता है। ये किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी मददगार है।

किस योजना के तहत मिलेगा लाभ

देश में उद्यमिता (Entrepreneurship) को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस बीच किसानों को भी खेती के साथ-साथ एग्री बिजनेस से जोड़ा जा रहा है, ताकि किसान आत्मनिर्भर बन सकें, अपनी उपज को बेहतर दाम पर बेचकर अपनी आय बढ़ा सकें। इसके लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना भी चलाई है। जिसके तहत फूड प्रोसेसिंग से जुड़ी हुई सभी तरह की जरूरतें जैसे खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण यानी फल, सब्जी, मसाले, फूल और अनाजों की प्रोसेसिंग, वेयर हाउस और कोल्ड स्टोरेज आदि स्थापित करने के लिए 35 फीसदी तक अनुदान दिया जाता है। सरकार ने इस योजना की पात्रता के लिए अलग-अलग तरह के नियम बनाएं हैं। अगर आप इन सभी नियम के अनुसार योग्य हैं तो आपको सरकार की तरफ से 10 लाख की आर्थिक मदद मिल सकती है। इस काम के लिए नाबार्ड और अन्य वित्तीय संस्थाएं भी सस्ती दरों पर लोन की सुविधा देती हैं।
विदेशों में लीची का निर्यात अब खुद करेंगे किसान, सरकार ने दी हरी झंडी

विदेशों में लीची का निर्यात अब खुद करेंगे किसान, सरकार ने दी हरी झंडी

लीची बिहार की एक प्रमुख फसल है। पूरे राज्ये में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। बिहार के मुजफ्फरपुर को लीची उत्पादन का गढ़ माना जाता है। यहां की लीची विश्व प्रसिद्ध है, इसलिए इस लीची की देश के साथ विदेशों में भी जबरदस्त मांग रहती है। लीची को लोग फल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। साथ ही इससे जैम बनाया जाता है और महंगी शराब का निर्माण भी किया जाता है। जिससे दिन प्रतिदिन बिहार की लीची की मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई मांग को देखते हुए सरकार ने प्लान बनाया है कि अब किसान खुद ही अपनी लीची की फसल का विदेशों में निर्यात कर सेकेंगे। अब किसानों को अपनी फसल औने पौने दामों पर व्यापारियों को नहीं बेंचनी पड़ेगी। अगर भारत में लीची के कुल उत्पादन की बात करें तो सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन बिहार में ही किया जाता है। यहां पर उत्पादित शाही लीची की विदेशों में जमकर डिमांड रहती है। इसलिए सरकार ने कहा है कि किसान अब इस लीची को खुद निर्यात करके अच्छा खास मुनाफा कमा सकेंगे। इसके लिए सरकार ने मुजफ्फरपुर जिले के चार प्रखंडों में 6 कोल्ड स्टोरेज और 6 पैक हाउस का निर्माण करवाया है। इसके साथ ही 6 पैक हाउस को निर्देश दिए गए हैं कि वो किसानों की यथासंभव मदद करें। इन 6 पैक हाउस में प्रतिदिन 10 टन लीची की पैकिंग की जाएगी, जिसका सीधे विदेशों में निर्यात किया जाएगा।

ये भी पढ़ें:
खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन
बिहार लीची एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया है कि निर्यात का काम बिहार लीची एसोसिएशन देखेगी, तथा इस काम में किसानों की यथासंभव मदद की जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले मुजफ्फरपुर में मात्र एक प्रोसेसिंग यूनिट की व्यवस्था थी, लेकिन अब मांग बढ़ने के कारण सरकार ने जिले में 6 प्रोसेसिंग यूनिट लगवा दी हैं। अगर भविष्य में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउस की मांग बढ़ती है तो उसकी व्यवस्था भी की जाएगी। जिससे किसान बेहद आसानी से अपने उत्पादों को विदेशों में निर्यात कर पाएंगे। बिहार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि इस प्रोजेक्ट को बागवानी मिशन के तहत लॉन्च किया गया है। जिससे किसानों को अपने उत्पादों को मनचाहे बाजार में एक्सपोर्ट करने में मदद मिले। लीची की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर 4 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें 50 फीसदी सब्सिडी सरकार देती है। ऐसे में अगर किसान चाहें तो खुद ही लीची की प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकते हैं और खुद के साथ अन्य किसानों की भी मदद कर सकते हैं। उत्पादन को देखते हुए आने वाले दिनों में जिलें में लीची की प्रोसेसिंग यूनिट्स में बढ़ोत्तरी होगी।

ये भी पढ़ें:
लीची की वैरायटी (Litchi varieties information in Hindi)
कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि वर्तमान में मुजफ्फरपुर के मानिका, सरहचियां, बड़गांव, गंज बाजार और आनंदपुर में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउस खोले गए हैं। जहां लीची को सुरक्षित रखा जा सकेगा। इनका उद्घाटन आगामी 19 मई को किया जाएगा। किसानों को मदद करने के लिए बिहार लीची एसोसिएशन, भारतीय निर्यात बैंक और बिहार बागवानी मिशन तैयार हैं। ये किसानों को यथासंभव मदद उपलब्ध करवाएंगे, ताकि मुजफ्फरपुर की लीची का विदेशों में बड़ी मात्रा में निर्यात हो सके।
खुबानी तेल का व्यवसाय शुरू कर किसान लाखों की आय कर सकते हैं

खुबानी तेल का व्यवसाय शुरू कर किसान लाखों की आय कर सकते हैं

आप भी यदि हाल ही में कोई व्यवसाय शुरू करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आपके लिए खुबानी तेल का व्यापार काफी अच्छा विकल्प सिद्ध हो सकता है। इस व्यवसाय से आप प्रति माह सुगमता से 60 से 70 हजार रुपये की आमदनी कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आज के इस आधुनिक दौर में हर कोई अपनी नौकरी से ज्यादा आय करना चाहता हैं, जिसके चलते लोग अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के विषय में विचार करते हैं। जिससे कि वह शानदार मोटी आमदनी सहजता से कर पाएं। यदि आप भी वर्तमान में व्यवसाय चालू करने के संदर्भ में विचार कर रहे हैं, तो आज हम आपके लिए एक ऐसा शानदार बिजनेस आइडिया लेकर आए हैं, जिसे शुरू करके आप प्रति महीने लगभग 60 से 70 हजार रुपये की आमदनी हांसिल कर सकते हैं। दरअसल, हम खुबानी तेल के कारोबार की बात कर रहे हैं। इस तेल को तैयार करने के लिए लागत बेहद कम आएगी।

खुबानी तेल का व्यापार ऐसे शुरू करें

खुबानी तेल के व्यवसाय के लिए आपको एक यूनिट स्थापित करनी है, जो बाजार में आपको सुगमता से मिल जाएगी। सर्व प्रथम आपको बाजार से मशीनरी, फर्नीचर एंड फिक्सर्स इत्यादि खरीदने होंगे। जिससे कि आपका व्यवसाय बेहतर ढ़ंग से चल सके। उसके बाद आपको तेल निकालने के लिए खुबानी के बीज की जरूरत पड़ेगी। यह बीज आप प्रत्यक्ष तौर पर किसानों से सही कीमतों पर खरीद सकते हैं।

ये भी पढ़ें:
खुबानी (रेड बोलेरो एप्रिकॉट) Red Bolero Apricot ki Kheti ki jaankari Hindi mein

 

इसके उपरांत आपको यह बीज धूप में सुखाने के लिए छोड़ देने हैं। उसके बाद आपको इन बीजों को कोहलू में डालकर पीसना पड़ेगा। इस प्रक्रिया के आधे घंटे के उपरांत इन बीजों से तेल निकलना चालू हो जाएगा। इसके पश्चात आपको तेल की सफाई करके उसे बोतलों में पैक कर देना है। इस प्रकार से आप खुबानी तेल को तैयार कर सकते हैं।


 

खुबानी तेल के कारोबार में आने वाला खर्चा और आमदनी

यदि आप खुबानी तेल का व्यवसाय बड़े पैमाने पर चालू करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको न्यूनतम 10 लाख रुपये तक खर्चा करना पड़ेगा। इस खर्चे में मशीन से लेकर बाकी भी बहुत से आवश्यक सामान आ जाएंगे। साथ ही, यदि आप इस व्यवसाय को कम बजट में चालू करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कम से कम दो लाख रुपये तक का खर्चा करना पड़ेगा। एक बार आपका व्यवसाय चल जाएगा, तो आप इसके जरिए प्रति माह 60-70 हजार रुपये की आमदनी सुगमता से कर सकते हैं। इस व्यवसाय की यह विशेषता है, कि इससे आप हर दिन दोगुना मुनाफा हांसिल कर सकते हैं।

ये भी पढ़ें:
अखरोट की खेती कर किसानों को होगा बेहद मुनाफा


खुबानी तेल का उपयोग

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खुबानी तेल की मांग सबसे ज्यादा होती है। बतादें कि इस तेल को खुबानी के बीज से निकाला जाता है। बतादें, कि यह तेल काफी ज्यादा हल्का होता है। इस तेल का उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों में किया जाता है। कुछ लोग तो इस तेल का उपयोग शरीर की मालिश करने के लिए करते हैं। क्योंकि, इसके अंदर विटामिन E, विटामिन K इत्यादि विभिन्न प्रकार के तत्व पाए जाते हैं। यह तेल त्वचा में नमी बरकरार रखने एवं बालों को मजबूत और सशक्त बनाने के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है।

बिहार में मखाना प्रोसेसिंग यूनिट खोलने के लिए मिलेगा 85% प्रतिशत अनुदान

बिहार में मखाना प्रोसेसिंग यूनिट खोलने के लिए मिलेगा 85% प्रतिशत अनुदान

मखाना प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित कर लाखों की आय करना चाहते हैं, तो आज का यह लेख आपके लिए बेहद फायदेमंद है। भारत में 85% प्रतिशत मखाने की पैदावार केवल बिहार में होती है। बिहार के मिथिलांचल मखाना को जीआई टैग (GI Tag) भी हांसिल हुआ है। मखाने की खेती के साथ राज्य सरकार मखाना प्रोसेसिंग पर बल दे रही है। इसी कड़ी में मखाना प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के लिए कैपिटल सब्सिडी की पेशकश की गई है।  राज्य सरकार के इस कदम से मखाना प्रोसेसिंग यूनिट लगाके शानदार धनराशि कमा सकेंगे। परंतु, प्रोसेसिंग इकाई नहीं होने के कारण ज्यादा पैदावार करने के पश्चात भी किसान को उतना ज्यादा मुनाफा नहीं होता है। ऐसी स्थिति में बिहार की नीतीश सरकार ने मखाना उत्पादक किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में ये एक बड़ा कदम उठाया है |

मखाना प्रोसेसिंग यूनिट को प्रोत्साहन दिया जाएगा 

दरअसल, बिहार सरकार का मानना है, कि मखाना उत्पादक राज्य होने के बावजूद भी बिहार के कृषक समुचित मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं। चूंकि, फूड प्रोसेसिंग इकाई के अभाव के कारण किसान ओने-पौने भाव पर अपनी पैदावार को बेचने पर मजबूर हैं। अगर राज्य में मखाना प्रोसेसिंग यूनिट को प्रोत्साहन दिया जाए, तो किसानों की आमदनी बढ़ जाऐगी। साथ ही, किसान आत्मनिर्भर भी बनेंगे। यही कारण है, कि सरकार ने कृषकों को मखाना प्रोसेसिंग यूनिट पर अनुदान देने का निर्णय लिया है। इसके लिए बिहार कृषि प्रोत्साहन नीति के अंतर्गत सरकार ने मखाना प्रोसेसिंग यूनिट को बढ़ाने की योजना निर्मित की है। 

किसान भाई अनुदान से इस तरह लाभ उठा सकते हैं 

किसान भाई इस योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। योजना के अंतर्गत उन कृषकों को अनुदान दिया जाएगा, जो प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करना चाहते हैं। अनुदान का फायदा उठाने के लिए आपको उद्यान निदेशालय की वेबसाइट https://horticulture.bihar.gov.in पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करना पड़ेगा।

मखाना प्रोसेसिंग इकाई खोलने के लिए कितना अनुदान मिलेगा ?

यदि आप प्रोसेसिंग इकाई खोलने के लिए व्यक्तिगत, पार्टनरशिप, समिति अथवा किसी कंपनी के माध्यम से निवेश करना चाहते हैं, तो आपको 15 फीसद तक का अनुदान मिलेगा। वहीं, किसान उत्पादक कंपनियों के लिए 25% फीसद अनुदान रहेगा। अनुदान का लाभ उठाने के लिए कृषकों को वक्त पर आवेदन करना पड़ेगा। अगर किसान ज्यादा जानकारी हांसिल करना चाहते हैं, तो वे जिला उद्यान अधिकारी से सीधे संपर्क साध सकते हैं। ये भी पढ़ें: ये भी मखाना की खेती करके किसान हो सकते हैं मालामाल मिल रहा है 75% सब्सिडी

बिहार राज्य के इन जिलों में मखाने की खेती की जाती है  

बतादें, कि बिहार का मखाना देश-दुनिया में मशहूर है। यही कारण है, कि मिथिला के मखाने को जीआई टैग भी हांसिल हुआ है। बिहार में मखाने की खेती सबसे ज्यादा सुपौल, मधुबनी, समस्तीपुर और दरभंगा जनपद में की जाती है। मखाने की पैदावार में बिहार की भागीदारी 80 से 90 प्रतिशत तक है। अब ऐसी स्थिति में बिहार के किसान सरकार की इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।